अमर क्षण
फूलों में गंध
कौन रोक पाया है
हमेशा के लिए।
लाख बने बांध
कौन रोक पाया है
नदी की विनाश लीला।
काल का अश्व
किसने बांधा है।
गुजर जाते हैं पल, घट, युग।
क्षणिक बन कर
रह जाता है
यौवन का ज्वार।
गुजर जाता है
सब कुछ
यही है जीवन का सार।
मगर, अमर हो जाता है
क्षण सिर्फ एक क्षण
पाकर पावन प्यार।
— प्रतिभा आर्य
अलवर (राजस्थान)