अभी कुछ बरस बीते
अभी कुछ बरस बीते
मैंने एक ख्वाब बुना था
जिसे आँखों ने चुना था और
दिल ने सुना था …….
सुनो वो ख्वाब मत टूटने देना
मुझे मत रूठने देना
अगर हम रूठ भी जाए तो
तो तुम हम को मना लेना
कसम से हम मान जाएंगे
यू रिश्तों का भरम रखना
कहां सब को आता है
कोई जब रूठ जाता
नहीं कोई मनाता है
नहीं कोई बुलाता है
सभी को तोड़ ना आता है
जोड़ना किस को आता है
सो तुम ऐसा नहीं करना
जरा सा हम झुक जाएंगे
जरा सा तुम झुक जाना
नहीं कुछ भी बिगड़ ता है…..
ना ही कोई छोटा बढ़ा होता….
इसलिए.. जहां तक हो सके
रिश्ता निभाना ही बेहतर है
खुदा के बनाए रिश्तों को
तोड़ ना नहीं अच्छा……..
जो रिश्तों को निभाता है
तो खुदा उस से राज़ी है
बस उसी ने जीती बाज़ी है……….shabinaZ