अब लौट के न आऊँगा !
अब न गीत कोई प्रीत की गाऊंगा
अब न दिल किसी का बहलाऊँगा !
खिलौना समझ कर तोड़ देते है वो
अब न दिल किसी से मै लगाऊँगा !
तेरी यादों को बाँहों मे समेट कर
जीवन भर उसे गले लगाऊँगा !
न देखना पीछे मुड़ कर कभी
अब लौट के न आऊँगा !
जिन्दगी का दौर था समझकर
इस राह से मै भी गुज़र जाऊँगा !
विजय मिश्र * अभंग *