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8 Oct 2016 · 1 min read

अब लौट के न आऊँगा !

अब न गीत कोई प्रीत की गाऊंगा
अब न दिल किसी का बहलाऊँगा !

खिलौना समझ कर तोड़ देते है वो
अब न दिल किसी से मै लगाऊँगा !

तेरी यादों को बाँहों मे समेट कर
जीवन भर उसे गले लगाऊँगा !

न देखना पीछे मुड़ कर कभी
अब लौट के न आऊँगा !

जिन्दगी का दौर था समझकर
इस राह से मै भी गुज़र जाऊँगा !

विजय मिश्र * अभंग *

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