अब बनना चाहूँ मैं भी नेता !
बहुत हुई अब खिंचा तानी ,
खत्म हुई न मेरी परेशानी ,
करनी है अब तो मनमानी ,
छोड़ फौज का दाना-पानी ,
ये नौकरी न कोई सुख देता, झुठी दरिया नाव को खेता।
पकड़ सियासती गलियारे, अब बनना चाहूँ मैं भी नेता।।
पढ़ा-लिखा हुँ बात अलग है ,
माना उनकी जमात अलग है ,
किसी की छुरी किसी के गर्दन ,
सबकी ही औकात अलग है ,
ले थोड़ी सी पहचान इन्ही से, इनके सुर में राग को देता।
पकड़ सियासती गलियारे, अब बनना चाहूँ मैं भी नेता।।
चलू निकलूँ मैं भी खेलने खेल ,
बस एकबार चल जाऊं जेल ,
तभी होगी भीड़ इक्कठी पीछे ,
कभी होऊंगा ना इसमे फेल ,
थोड़ी उल्टी थोड़ी सीधी, मैं सत्ताधिसी बन अभिनेता।
पकड़ सियासती गलियारे, अब बनना चाहूँ मैं भी नेता।।
जम कर के मौज उड़ाऊंगा ,
हर देश-विदेश घूमने जाऊँगा ,
फिर सुर्खियों में आ जाऊँगा ,
हर अखबारों में छा जाऊँगा ,
ओढ़ दुशाला चद्दर खादी, मैं अपने सर टोपी धर लेता।
पकड़ सियासती गलियारे, अब बनना चाहूँ मैं भी नेता।।
होता ये आसान जो बुद्धि ,
आता करना खुद की शुद्धि ,
पहले अगर ये सोचा होता ,
घोटालों से कर लेता बृद्धि ,
अपने संग रिस्तेदारों की, घनी मोटी कमाई मैं कर लेता।
पकड़ सियासती गलियारे, अब बनना चाहूँ मैं भी नेता।।
तन उजला मन हो काला ,
फर्क नही कुछ पड़ने वाला ,
गिरगिट को आराध्य मान ,
गुण सीखूं रंग बदलने वाला ,
इन स्वेत लिबासों के भीतर, गुण-अवगुण है छिप लेता।
पकड़ सियासती गलियारे, अब बनना चाहूँ मैं भी नेता।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १९/११/२०१८ )