अब तो उठ जाओ, जगाने वाले आए हैं।
अब तो उठ जाओ,
तुम्हें जगाने वाले आए हैं।
पराधीनता की जंजीरों से,
छुड़ाने वाले आए हैं।
अब तो उठ जाओ . . . . . .
अपने को पहचान ले,
अपनों को जान ले।
कल क्या थे आज क्या हो,
थोड़ा सा ज्ञान ले।
कितना दबाये हुए हो,
कितना सताये हुए हो।
अपने ही धर्म संस्कृति से, कैसे भटकाये हुए हो।
अब तो इतिहास के पन्नों को, उलट कर देख लो।
इतिहास बताने वाले आए हैं।
मानसिक गुलामी से, निजात दिलाने वाले आए हैं।
अब तो उठ जाओ . . . . . .
सब कुछ हार कर,
कैसे काटे थे वो दिन।
लुट,अत्याचार, बलात्कार,
करते थे वो जालिम जिन्न।
अपने ही गांव बस्ती घर से,
कैसे निकाले हुए हो।
गुफाओं कंदराओं बीहड़ों में,
सर छुपाए हुए हो।
अब तो सर उठाओ,
रास्ता दिखाने वाले आए हैं।
ऊंच नीच की दलदल से,
बाहर निकालने वाले आए हैं।
अब तो उठ जाओ . . . . . .
कैसे जलाया गया है,
गांवों का गांव।
कैसे मिटाया गया है ,
पुरखों का नाव।
कैसे नीच जाति के दलदल में,
धंसाये गये हो।
कैसे अपने ही इतिहास में,
सदा के लिए मिटाये गये हो।
सदियां बीत गई हे,
इतिहास जमीं पे दबाये हुए,
उन धुलो को हटाने वाले आए हैं।
हमारी पहचान जो खो गई है,
वो पहचान बताने वाले आए हैं।
अब तो उठ जाओ. . . . . .