अब जीत हार की मुझे कोई परवाह भी नहीं ,
अब जीत हार की मुझे कोई परवाह भी नहीं ,
क्यूंकि अब तेरे सिवा मेरी ,कोई चाह भी नहीं ll
बस तेरी ही गलियों मैं, मुड जाते है यूँ कदम ,
जैसे चलने के लिए बाकी , कोई राह भी नहीं ll
न परखो इतना,भी “रत्न” की चाहत को ए ज़नाब ,
समंदर है, माप सका जिसकी कोई थाह भी नहीं ll
तड़प जाता है गुरूर ,रुसवा हो तेरी महफ़िल मैं
चुप से उठते है,होती दिल की कोई आह भी नहीं ll