अब उसने अपना घर ढूंँढ लिया है
अब उसने अपना घर ढूंँढ लिया है,
अपना रास्ता चुन लिया है,
अपनी होकर कैसे हई परायी,
प्रीत मे कैसी है ये दुःखदायी।
आंँसू छलके नैना से जब भी,
दूर हृदय से कोई खींच लिया है,
पल भर ना रहे गौरों के संग,
कैसे प्रीत मीत सब भूल रहा है।
अब उसने अपना घर ढूंँढ लिया है…।।
रीत–रिवाज का बहाना लेकर,
संसार है आना जाना ये कह कर,
जल के धारा-सी बह जाऊँ अक्सर,
कैसे रिश्ते नाते हर पल टूट रहे है।
एक वीरान सा खंडहर हो गया,
सूना मन आंँगन छोड़ गया,
द्वार नया स्वागत को है खड़ा,
ना जाने कब अपनों को छोड़ गया।
अब उसने अपना घर ढूंढ लिया है…..।।
प्रकृति की छाया है ऐसी,
या खून का रंग बदल गया है,
मन दर्पण भी दिखा ना सका,
प्रतिबिम्ब जो पहले नजर आ रहा।
अपने मन प्रेम को तुम ना समझो,
जग भी ना समझा पायेगा,
जोड़ ना सको खुद को जब हृदय से,
कोई किसी को नहीं बदल पायेगा।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।