अन्नदाता
मुझे चलाना आता है
हल कुदाल और फावड़ा,
सुखी, बंजर जमीन पर
नहीं चलाना आता
तीर झुटे वायदों का
आवाम के विश्वास पर ।
मैंने सहे हैं बदन पर,
सर्दी के सर्द थपेड़े
गर्मी की बहती लू
बारिश की रिम – झिम बूंद
बिगड़े मौसम की मार,
फिर भी कोई गिला नहीं
मेरे हालातों की गवाह हैं
जलती हुई फ़सलें
औलों से तबाह हुई फसलें
आंधी – तूफान में
तिनका – तिनका फ़ैला
मेरी उपज का हिस्सा ।
मुझे नहीं मिला
आराम मेरे हिस्से का
हक कभी अन्नदाता का
दाम मेरी उपज का
भोजन मेरे पेट का
नाम मेरे काम का ।
मैं रहा हूं अकेला परेशां
जिया हूं उम्रभर
सफ़र को तन्हा – तन्हा
महफूज़ रह सकूं रख सकूं
जर – ज़मीन और जंगल को
इसलिए चला हूं जंग लडने को ।