“अन्दर ही अन्दर”
“अन्दर ही अन्दर”
अन्दर ही अन्दर
कोई पढ़ता है,
वो चुपके-चुपके
पन्ने पलटता है,
उन अल्फाजों से
हालात बदलता है,
अहसासों में भीगकर
कुछ स्वाद बदलता है।
“अन्दर ही अन्दर”
अन्दर ही अन्दर
कोई पढ़ता है,
वो चुपके-चुपके
पन्ने पलटता है,
उन अल्फाजों से
हालात बदलता है,
अहसासों में भीगकर
कुछ स्वाद बदलता है।