अनोखा एहसास
त्यागा मैने दुनिया सारी,
त्यागी लोक लाज सभी।
अपने हि परछाईं में,
जब ढुढ़ने लगी मैं तुम्हें,
तब जा के एहसास हुआ,
शायद कोई रिश्ता है नया,
पहले भी ना थी अकेली,
पर ना जाने क्या नई बात हुई,
तनहाई में भी ना जाने क्यों,
तेरी चेहरा नजर आता है,
फुलों के सुगंध कि तरह,
रहता हर पल तेरी याद,
साथ हमारे।
सतरंगी इस दुनिया में ,
ना जाने तुम क्यों ना लगते पराई।
तेरे सपने से खेलने का,
साथ उसे सजाने का,
ना जाने क्यों जी करता।
इंतज़ार सिर्फ तेरा ही,
ना जाने क्यों दिल मेरा करता है।
शायद इस अनोखि एहसास को ही,
कहती “प्रेम” यह दुनिया सारी।
राधा कुमारी झा
हावड़ा, पश्चिम बंगाल