अनाथ का “दर्द”
शीर्षक
अनाथ का “दर्द”
अनाथ और बेसहारा उस मासूम का दर्द जो सड़क किनारे फुटपाथ पर जीवन जी रहा है
खाना मांगू तो सबको,चोर नजर आता हूं।
पैसे मांगू तो हरमखोर,नजर आता हु
मांगू तो क्या मांगू, इस दुनिया से साहब।
यहां तो हर किसी को,आवारा चोर नजर आता हूं।
दो टुकड़ा रोटी को,फिरता हु मारा मारा।
लोग देखे तो कहते हैं,नहीं हे बेसहारा।
सड़क किनारे फुटपाथ पर ,जीवन व्यतीत हो जाता है।
गम के घूंट पी पी कर ,गम ही सहारा हो जाता है।
ठंड गर्मी वर्षा सहकर, लोगो को पागल नजर आता हु।
खाना मांगू तो सबको ,चोर नजर आता हूं।
हमारा भी मन होता है ,बुलंदियों को छूने को।
पर अफसोच जिंदगी ने ,नही दिया हमे मकान सर ढकने को।
कहा रहूं कहां जाऊं ,यह समझ नहीं आता है।
अनाथ हु न साहब, ऐसे ही गुजारा हो जाता है।।
दिल का सच्चा हु साहब, दिल में ना जाने कितने गम संयोजे रखता हु।
खाना मांगू तो सबको चोर नजर आता हु।
नहीं हे गद्देदार बिस्तर,
नही है मखमल की रजाई।
फिर भी न जाने कितनी बार, मच्छरों ने नीद जगाई।
कीचड़ हे धुआं हे ,और यहां तो धूल हे।
यही अपनी नगरी है ,और यही अपना सुकून हे।
पढ़ना साहब आता नहीं ,स्कूल जाना चाहता हु।
फिर भी न जाने लोगो को में चोर नजर आता हु।
खाना मांगू तो सबको, चोर नजर आता हु।
पैसे मांगू तो हराम खोर ,नजर आता हूं।।
मांगू तो क्या मांगू इस दुनिया से साहब ,सबको आवारा चोर नजर आता हु।
आलोक वैद “आज़ाद”
Alok Vaid “Azad”
एम ० ए ० (समाज शास्त्र)
मो ० 8802446155
ईमेल आईडी- alokvaidazad096@gmail.com