Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Dec 2023 · 2 min read

संस्कारों के बीज

लघुकथा

संस्कारों के बीज

अपने बेटे शुभम की पहली वर्षगाँठ पर उसकी मम्मी रेवती ने सुबह-सुबह उसे नहला-धुलाकर अच्छे से तैयार कर दिया। नये कपड़े पहन और सजधज कर शुभम किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था।
रेवती ने पहले उसे अपने साथ में बिठाकर पूजागृह मे पूजा किया, फिर बारी-बारी से उसे सभी बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद दिलाने के लिए हॉल में पहुँची।
सालभर का नादान बच्चा भला क्या जाने, पर रेवती उसे दादा, दादी, पापा, चाचा और बुआ के पैर छूकर आशीर्वाद लेने के लिए बोली। शुभम को कभी दाएँ तो कभी बाएँ हाथ से बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते देख उसकी बुआ बोली, “क्या भाभी जी, आप भी न कमाल कर देती हैं। आज तो दूध पीते बच्चे के पीछे ही पड़ गई हैं। हमारा भतीजा धीरे-धीरे सब सीख जाएगा। अभी तो सालभर का ही हुआ है और आप अभी से उसे पैर छूकर आशीर्वाद लेना सिखाने बैठ गईं।”
रेवती बोली, “गुड़िया, अच्छी आदतें बच्चों को जितनी जल्दी सिखा दें, उतना ही अच्छा है। यही तो हमारे संस्कार हैं, जो हमें बच्चों को हस्तांतरित करनी है। देखो, कितनी आसानी से ये सबके पैर छूकर आशीर्वाद ले रहा है। यही बात हम उसे 10-12 साल की उम्र में सिखाते, तो शायद उतनी सहजता से नहीं स्वीकारता। इसलिए मैं चाहती हूँ कि हम सभी इसे शुरू से ही अच्छी आदतें सिखाएँ, ताकि आगे चलकर वह एक बेहतर इंसान बने। हमारे दादाजी अक्सर कहा करते थे कि संस्कारों के बीज बचपन में ही बोएँगे, तो आगे चलकर अच्छे फल पाएँगे। इसलिए कहते हैं न, शुभस्य शीघ्रम।”
शुभम को गोद में उठाती हुए अम्मा बोली, बहु, तुम्हारे दादाजी बिल्कुल सही कहते थे। छोटे बच्चे वही सीखते हैं, जो वे बड़े को करते हुए देखते हैं या बड़े उन्हें सिखाते हैं। बच्चों के अच्छा या बुरा बनने में सबसे बड़ी भूमिका परिवार वालों की ही रहती है और कोई भी परिवार नहीं चाहता कि उनका बच्चा बुरा बने। इसलिए हम सबको चाहिए कि बच्चों को अच्छी बातें सिखाएँ और उनके सामने अच्छे से पेश आएँ। हमें अपनी कथनी और करनी में फर्क नहीं रखनी चाहिए। जैसा हम बच्चे को बनाना चाहते हैं, वैसा हमें खुद बनकर दिखाना चाहिए। हमें चाहिए कि हम उनके रोल मॉडल बनें।”
गुड़िया बोली, “जी मम्मी, आप एकदम सही कह रही हैं। आज भाभीजी जी और आपने मेरी आँखें खोल दी है।”
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

Language: Hindi
90 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
3105.*पूर्णिका*
3105.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बाहर-भीतर
बाहर-भीतर
Dhirendra Singh
पानी  के छींटें में भी  दम बहुत है
पानी के छींटें में भी दम बहुत है
Paras Nath Jha
होता है सबसे बड़ा, सदा नियति का खेल (कुंडलिया)
होता है सबसे बड़ा, सदा नियति का खेल (कुंडलिया)
Ravi Prakash
हमारी मोहब्बत का अंजाम कुछ ऐसा हुआ
हमारी मोहब्बत का अंजाम कुछ ऐसा हुआ
Vishal babu (vishu)
महसूस तो होती हैं
महसूस तो होती हैं
शेखर सिंह
ତୁମ ର ହସ
ତୁମ ର ହସ
Otteri Selvakumar
मत खोलो मेरी जिंदगी की किताब
मत खोलो मेरी जिंदगी की किताब
Adarsh Awasthi
करो पढ़ाई
करो पढ़ाई
Dr. Pradeep Kumar Sharma
देख लेते
देख लेते
Dr fauzia Naseem shad
दोहा
दोहा
sushil sarna
शहर की बस्तियों में घोर सन्नाटा होता है,
शहर की बस्तियों में घोर सन्नाटा होता है,
Abhishek Soni
बाबूजी
बाबूजी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
त्याग समर्पण न रहे, टूट ते परिवार।
त्याग समर्पण न रहे, टूट ते परिवार।
Anil chobisa
हिंदू-हिंदू भाई-भाई
हिंदू-हिंदू भाई-भाई
Shekhar Chandra Mitra
"इशारे" कविता
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
"शब्द-सागर"
*Author प्रणय प्रभात*
ख्याल........
ख्याल........
Naushaba Suriya
मौसम - दीपक नीलपदम्
मौसम - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
"तुम्हें राहें मुहब्बत की अदाओं से लुभाती हैं
आर.एस. 'प्रीतम'
अनिल
अनिल "आदर्श "
Anil "Aadarsh"
अपनी ही हथेलियों से रोकी हैं चीख़ें मैंने
अपनी ही हथेलियों से रोकी हैं चीख़ें मैंने
पूर्वार्थ
गए थे दिल हल्का करने,
गए थे दिल हल्का करने,
ओसमणी साहू 'ओश'
ख्वाब आँखों में सजा कर,
ख्वाब आँखों में सजा कर,
लक्ष्मी सिंह
अधखिली यह कली
अधखिली यह कली
gurudeenverma198
सृजन
सृजन
Prakash Chandra
एक उलझन में हूं मैं
एक उलझन में हूं मैं
हिमांशु Kulshrestha
Thought
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
कविता के मीत प्रवासी- से
कविता के मीत प्रवासी- से
प्रो०लक्ष्मीकांत शर्मा
Loading...