अनन्यानुभूति
अपनी विरहाकुलता का मैं
साक्षी स्वयं अकेला
साक्षी है जो अन्य उसी ने
पैदा किया झमेला
विरहाकुलता देन उसी की
जो जन समझ न पाते
वे विमोह वश व्याकुल होते
रोते, अश्रु बहाते
जिन्हें पता है वही रुलाता
वही हॅंसाता हमको
मौज मनाते हैं वे प्रतिपल
दूर भगा हर तम को
जो उसके अपने होते वह
उन्हें यातना देता
ऐसा कर वह उन अपनों की
कठिन परीक्षा लेता
समझ गया मैं उसकी चालें
मस्त स्वयं में रहता
वही लेखनी से लिखता जो
वह कानों में कहता
वह सबका, सब उसके जाए
कोई नहीं पराया
यह रहस्य जो जान गया वह
उसके मन को भाया
वह रब है, अल्लाह वही है
वही गाॅड गुरु ईसा
उसने सारी सृष्टि रचायी
पेरिस हो या पीसा
आओ उसको नमन करें हम
उस पर बलि-बलि जाएं
उसके अभिनंदन में गाकर
मनवांछित वर पाएं ।
महेश चन्द्र त्रिपाठी