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10 Feb 2017 · 1 min read

अनंत प्रतीक्षा

तुझे देखकर मैं जी रहा, मुझे देखकर तू जी रही
जहर मै भी पी रहा, जहर तू भी पी रही
मुरझाया चेहरा बोल रहा, आँख भी ना सोई है
शायद मेरी तरह से तू भी, छिपके चुपके रोई है
बरसो के श्रम से बना जो, वो नीड़ पल में ढह गया
चिरकाल से संजोया स्वपन, आसुओ में बह गया
उम्मीदों आशा पर टिका था, पलको पे सजाया था
खाई जब अपनो की ठोकर, पल में ही भरमाया था
जुड गए रिश्ते नए जब, सब पखेरु उड़ गए
साँस बाकी आस बाकी, तन्हाई का एहसास बाकी
जीरण तन, ठना है मन, फिर भी रस्ता तके नयन
कब लौट के बच्चे आएगे, मात पिता को अपनाएगे
भाए ना भोजन की थाली, मन है बोझिल घर है खाली
बच्चों का अब शोर नही है, क्यो इस रात की भोर नहीं है
हां शायद इक दिन आएगे, जब वो भी ठोकर खाएगे
तब रोऎगे, पछताऎगे, लेकिन हम को फिर ना पाएंगे

Language: Hindi
277 Views
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