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14 Nov 2023 · 1 min read

निर्मोही हो तुम

कितनी निर्मोही हो तुम बनी निष्ठुर कैसे
लुटाती ममता हँस कर हो सौतन जैसे
एक बालक है जो तुमसे थोड़ा दुलरा रहा
खीझती हो तुम उसपे हो रण चण्डी जैसे

कितनी निर्मोही हो तुम बनी निष्ठुर कैसे

जब कभी भी तुम्हे अनसुना कोई करे
भला उसका तो अब भगवान ही करे
उस फरियादी की बात तूने कब है सुनी
जो हर पल हर दम इंताजार ही करे

कितनी निर्मोही हो तुम बनी निष्ठुर कैसे

इंसान करते है दया मूक बधिरों पर फिरभी
क्या तुमने कंही रख दी अपनी आत्मा गिरवी
जो भगवान हो सबके तो इंसान मत बनो
इक आश लगा रखी है हो उन पे रहम भी

कितनी निर्मोही हो तुम बनी निष्ठुर कैसे

डॉ एल के मिश्रा

Language: Hindi
145 Views
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