अधबीच
समझ,
हैं एक छोटा आसान सा ये शब्द।
पर,
कर देता है कभी कभी निःशब्द।।
रिश्तों की डोर,
एक कच्चे धागे सी।
बचाने को,
लगती कोशिश मुश्किल सी।।
अपना,
शब्द है प्यारा।
लगता वही दुश्वार ,
जब मतलब निकल जाये सारा।।
कोशिश,
लगती है भारी।
साथ लेकर चलने की,
जब जब हो बारी।।
असमंजस,
बोल ना पाने का।
अपनों को आपस में,
जोड़ ना पाने का।।
ताना बाना,
जोड़ने का।
लगता हैं मुश्किल,
क्यूंकि ज़माना है मुँह मोड़ने का।।
समझ के,
अपनों की रिश्तों की डोर।
कोशिशें ले जाती,
मौन असमंजस की और।।
ताना-बाना,
खुद में ही बुनता रहता।
और रिश्तो की इस रस्सा-खींच में,
अधबीच खुद में ही गुमशुदा रहता।।
डॉ. महेश कुमावत 12 अप्रैल 2023