अतिथि हूं……
अतिथि हूँ
आखिर कब तक
इस सराय में रहूंगा।
इक दिन अँधेरा
तो होना ही है….
मगर अभी छुट्टी
का वक्त शायद दूर है।
जब वक्त आएगा
तो खबर किसको होगी।
बिन बताये….
बिन बुलाये………
सिमट जाऊँगा।
‘उसके’ आग़ोश में
चला जाऊँगा।
‘घायल’ है तो रवि है
रवि है तो रोशनी भी है।
इक दिन अँधेरा तो होना ही है
उस पल का तलबगार तो हूँ।
पर….
अभी ठहर जा ऐ वक्त…..
अभी मैं कहाँ तय्यार हूँ।