अतिथि भगवान के बराबर होते हैं
प्रकाश और मनीषा की नई-नई शादी हुई थी, दोनों मुंबई में नौकरी करते थे, काम और बड़े शहर की आपाधापी से दूर कहीं घूमने का मन बनाया था। अपनी निजी कार से बांधवगढ़ एवं अन्य दर्शनीय स्थल जो रास्ते में पड़ रहे थे, खुशी से घूमने निकल पड़े। बांधवगढ़ में ठहरने के लिए गेस्ट हाउस बुक किया था गाइड इत्यादि सभी सुविधाएं थी। प्राकृतिक वातावरण एवं जंगली जीव खुले में देखना, शेर को देखना, हाथी की सवारी एक अलग ही अनुभव था। 3 दिन कब गुजर गए पता ही नहीं चला कल सुबह नाश्ता कर 8:00 बजे तक निकलने का कार्यक्रम था, सो नाश्ता कर नेशनल हाईवे की हो निकल पड़े। हाईवे पर पहुंचने के लिए कई वन ग्रामों से होते हुए पतली सड़क पर सौंदर्य निहारते हुए जा रहे थे कि, अचानक तेज बारिश होने लगी। घंटे भर की बारिश में ही पुलिया पर पानी आ गया, आगे की यात्रा पर ब्रेक लग गया। पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था घंटे भर रुकने के बाद बापिस बांधवगढ़ लौटने का मन बनाया, कार बैक कर बांधवगढ़ की ओर चल दिए, लेकिन कुछ दूर चलने के बाद एक पहाड़ी नाला नाले का पानी पुलिया पर आ गया, अब तो गेस्ट हाउस भी नहीं पहुंच सकते थे। न गेस्ट हाउस न हाईवे बीच में ही फंस गए। दोपहर का समय हो गया था भूख भी लग रही थी, लेकिन आस पास कोई साधन नहीं दिख रहा था। थोड़ा बहुत स्नैक्स जो चलते वक्त रख लिया था, बहुत आनंद दे रहा था। पानी था तो पानी पीकर रह गए।
शाम होने जा रही थी पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था सो रास्ता खुलने का कोई अंदाज नहीं लग रहा था। सुनसान सड़क पर उनकी कार के अलावा अन्य कोई वाहन भी दिखाई नहीं दे रहा था। अंधेरा घिरने लगा था, भूख प्यास जंगली जानवरों का डर भी सता रहा था, कार में दिन भर बैठे बैठे पैर अकड़ गए थे, दोनों निढाल हो गए थे, मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहे थे, कि अचानक कुछ ही दूरी पर टिमटिमाती रोशनी दिखाई दी। दोनों कार बैक कर उसी ओर चल पड़े। सड़क के किनारे एक झोपड़ी नुमा कच्चा घर दिखाई दिया, चारों ओर कांटो की बागड़ एवं बीच में लकड़ी का गेट था, दालान नुमा छपरी में आग जल रही थी, दो बच्चे पति पत्नी चूल्हे के आसपास बैठे थे, रोटियां सिक रहीं थी। मनीष ने आवाज लगाई भैया भैया, कौंन है? भैया हम हैं, पुलिया से हमारी गाड़ी नहीं निकल पा रही, हम दिन भर से यही पुलिया के पास थे, आपका घर दिखा सो यहां आ गए। आओ बाबू जी घर मालिक ने उन्हें अंदर बुला लिया, थोड़े से भीग गए थे घर मालकिन ने तुरंत खटिया बिछा कर दोनों को बैठने का आग्रह किया। दोनों की जान में जान आ गई, अरे आप दोनों भीग गए हैं, लकड़ी के पीठे देते हुए घर मालकिन बोली यहां चूल्हे की आंच में आ जाइए कपड़े सूख जाएंगे। दोनों चूल्हे के सामने बैठ गए। घर मालकिन ने कहा बाई जी सुबह से फंसे हो तो खाया पिया भी कुछ नहीं होगा, यहां कोई साधन भी नहीं है। हमारा खेत है सो हम यही रहने लगे हैं, यहां तो विद्यावान है। प्रकाश और मनीषा संकोच बस कहने लगे नहीं नहीं हमें केवल रात बितानी है। अरे रात बितानी है तो क्या मेहमानों को भूखा रात बिताने दें? नहीं नहीं बाबू जी हमें पाप में ना डालें घर आया मेहमान भगवान के बराबर होता है। जो रूखी सूखी है, भोजन बन ही रहा है। हमारे बाड़े में गिलकी लगी है, हरी मिर्च करौंदे की चटनी बांटती हूं, आप निश्चिंत हो जाओ, आपका घर है। दोनों चुप हो गए घर मालकिन अपने काम में व्यस्त हो गई। थोड़ी देर बाद दोनों को गरम गरम भोजन की थाली में परोस दी दोनों भोजन करने लगे, भोजन बहुत ही स्वादिष्ट लगा, ऐसा चूल्हे से उतरती हुई गरम-गरम रोटियां उन्होंने कभी नहीं खाई थी ऐसा स्वाद उन्हें होटलों में भी कभी नहीं मिला था। भोजन के बाद दोनों को खटिया बिछा दी मकान मालिक मालकिन नीचे ही सो गए। सुबह बारिश थम चुकी थी, दोनों ने चाय पी कर चलने की इजाजत मांगी, साथ ही मनीषा ने मालकिन को कुछ रुपए देना चाहे, मालकिन ने कहा बाई साहब, मेहमान भगवान के बराबर होते हैं, यह क्या कर रही हैं, क्यों हमें पाप में डाल रही हैं। बड़े प्रेम पूर्ण व्यवहार और कृतार्थ नेत्रों से देखते हुए दोनों ने विदा ली। रास्ते में दोनों कह रहे थे यह क्षण जिंदगी में हम कभी भुला नहीं पाएंगे, देखो कितना अंतर है हम और गांव वालों में, हम तो शायद उनके मलिन वस्त्र देखकर गेट के अंदर भी ना आने देते, लेकिन अब हमारा नजरिया बदल गया है। ग्राम जीवन आज भी कितना सरल और सहिष्णुता से भरा हुआ है।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी