अटूट प्रेम
हे मित्र ! तेरे शब्द बाण मेरे हृदय को चीर गए ,
मेरे अंतस्थ बसे तेरे प्रेम को विखंडित कर गए ,
फिर भी मुझे क्यों आभास होता है ?
मेरे खंड- खंड हृदय में अब भी तू बसता है ,
मेरे तेरे प्रति प्रेम का स्थान कोई नही ले सकता है ,
मेरे प्रेम का स्पंदन तेरे हृदय को
अवश्य उद्वेलित करेगा ,
जब तू अपने शब्दों से मुझे हुए
आघात का पश्चाताप करेगा ,
सच्चे मित्रों का हृदय में प्रेम अनंत होता है ,
जो परिस्थिजन्य आघातों से सर्वदा निरापद होता है।