अजब कृति
अजब कृति तू खुदा की,तेरी बात जुदा है सबसे
तेरी किलकारी आने से माथे पर सिलवट दिख जाती तबसे
तेरी मीठी मुस्कान भी कई बार अपनों को खुश न कर पाती
अपनी तुतली बातो से खुश करते करते तू बेटी कहलाती
अपने खुशियों का हिस्सा करते तू भाई की बहना बन जाती
अजब कृति तू खुदा की तू नारी कहलाती।
अपनों का घर छोड़ परायो का घर बसाती तू
सब कुछ देकर भी अपनों को अपना न कर पाती तू
बेटी, बहना और संगनी से कब मां बन जाती तू
ममता,वात्सल्य का सागर बनती फिर भी परायी रह जाती तू
अजब कृति है तू खुदा की सदा दर्द में भी मुस्काती तू
सबको पहचान दिला कर खुद को सदा भुलाती तू
अजब कृति तू खुदा की अपने चाहतों का घर गिरा कर
समाज में होम मेकर कहलाती तू,अजब कृति तू खुदा की
अजब कृति तू खुदा की नारी कहलाती तू।।