अजन्मी बच्ची का दर्द
भ्रूण हत्या
एक अजन्मी बच्ची का दर्द
यह व्यथा है मेरी
मैं हूं एक अजन्मी बच्ची
झूठी नहीं कहानी है
यह मेरी सच्ची
मैंने भी सपने
सजाए थे बहुत से
कहानी शुरू हुई थी
उसी दिन से
बधाई हो बधाई हो!
मां बनने वाली हो
तुम जीवन में
बेटा पाने वाली हो
मेरी मां खुशी से
फूली न समाई थी
मां बनने की खुशी
स्वयं ममता की
परछाई थीं
दादा-दादी खुशी से
झूम रहे थे
बुआ चाचा भी
खुशियों को चूम रहे थे
बेटा होगा बेटा होगा
सबकी यही आस थी
पर शायद वक्त की
कुछ और ही फरियाद थी
वह दिन भी आ गया
जिसका इंतजार था
अपने पोते से मिलने को
दिल बेकरार था
घर ही दाई को
प्रसव के लिए बुलाया गया
मां को अनपढ़ दाई से
ही संभलवाया गया
माँ मेरी दर्द से
चीख रही थी
मैं कोख में
आंसुओं से भीग रही थी
लो, मैं भी
इस दुनिया में आ गई
अरे !यह क्या लड़की हुई है ••••
लड़की हुई है…..
बस यही चीख-पुकार
मेरे कानों में गूंज गई
मेरी सांसे दाई के हाथों
ही रोक दी गई
मेरी दादी भी
अपनी वंशज को
भूल सी गई
मेरी जिंदगी
शुरु होने से पहले
खत्म कर दी गई
लड़की के श्राप में
एक मां की गोद
सूनी कर दी गई
मेरे सारे सपने
यूं ही बेमाने हो गए
मेरे सारे अपने
यूं ही बेगाने हो गए
मां की कोख में
महसूस किया था
जिन्हें उन्हीं दादा दादी ने
मां से मरहूम
किया था मुझे
मुझे छू भी ना
पाई थी मेरी मां
लड़की जनने की सजा
पाई थी मेरी मां
क्या एक लड़की
होने की सजा थी ये
या रूढ़िवादी समाज
की बेड़ियां थी ये
आखिर कब तक यूं ही
बेटियां मरती रहेंगी
आखिर कब तक यूं ही
माँ तड़पती रहेगी
मां तो मां होती है
क्या बेटा क्या बेटी
दोनों को एक ही कोख
से जनती है माँ
फिर भी ना जाने क्यों
छिन जाती है
माँ से उसकी बेटियां….
मां से उसकी बेटियां….
मां से उसकी बेटियां…..
मीनाक्षी वर्मा।
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश।