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18 Mar 2020 · 1 min read

अक्सर टूट जाती है

कसक कोई हमेशा दिल में या रब छूट जाती है
पकड़ता हूँ मै जो डाली वो अक्सर टूट जाती है

भरा जाता है जिसमें पाप को बचना नहीं मुमकिन
भले मजबूत हो कितनी वो हाँडी फूट जाती है

डकैती डालती है दिनदहाड़े है बड़ी जालिम
किसी का भी हो घर मजहब हमेशा लूट जाती है

है जलवा झूठ का परवाज ऊँचे आसमानों की
मैं सच लिखता हूँ तो सत्ता सियासत रूठ जाती है

है हर कुर्सी पे एल्कोहल लिए ईमान का पानी
बनाकर जाम पैमाने में कुर्सी घूँट जाती है

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