अंधेरों में अस्त हो, उजाले वो मेरे नाम कर गया।
अंधेरों में अस्त हो, उजाले वो मेरे नाम कर गया,
मुझे शिखर पे बिठा, घाटियों में नदी बन के बह गया।
कोरी नज़रों की शून्यता को नए नज़ारों सा कर गया,
यथार्थ मुझको बना, खुद तू भ्रम बन के जल गया।
बढ़ती है हर पल में, ऐसी आशिक़ी तू कर गया,
नादान दिल की गहराईयों में, वफ़ा का समंदर बन पिघल गया।
बेहोश एहसासों को, सपनों की स्याही से रंग गया,
तू तो भोर का तारा था, ओस की बाहों में ढल गया।
तन्हा मुसाफ़िर को, इश्क़ का कारवां तू कर गया,
जो आये पलकों पे कभी अश्क़, तू मेरे अक्स में बदल गया।
मंजिलें मेरी तय कर, खुद को राहों का एक मोड़ कर गया,
बेजुबानियों का तू शोर था, जो मेरी रूह में शब्द बन संवर गया।
अपने आहटों की बेबाकियाँ, तू अपने साथ कर गया,
और चाहतों की साझेदारिओं को मृगतृष्णा से भर गया।