*अंतिम प्रणाम ! डॉक्टर मीना नकवी*
अंतिम प्रणाम ! डॉक्टर मीना नकवी
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साहित्यिक मुरादाबाद व्हाट्सएप समूह पर मेरा पहला परिचय डॉ मीना नकवी जी से हुआ। उनकी कविताओं में सादगी थी और एक अजीब – सी उदासी छाई हुई थी। जो भी क्षण उल्लास के होते थे उनमें भी वह पीड़ा खोज कर ले आती थीं , और मैं चकित रह जाता था कि इस व्यक्ति के भीतर न जाने कितना दर्द भरा हुआ है ! उनको पढ़ना मानो स्वयं से बातें करना हो अथवा अपने दिल की गहराइयों में उतरना हो । वह काव्य को समर्पित व्यक्तित्व थीं। मूलतः वह उर्दू की कवयित्री थीं, लेकिन हिंदी में भी उन्होंने जब भी लिखा ,वह मील का पत्थर बन गया ।
मुझे उनसे प्रोत्साहन भी मिला और सराहना भी । जब व्हाट्सएप समूह में मेरे द्वारा लिखी गई कुंडलियों की आलोचना हुई और फिर मैंने कुंडलिया छंदशास्त्र को एक तरफ रख कर मुक्त कुंडलियाँ लिखना शुरू किया ,तब मेरा हौसला बढ़ाने में मीना नकवी जी अग्रणी थीं। फिर बाद में मैंने छंद विधान के अनुसार कुंडलियाँ लिखने का काम किया था ।
उनकी प्रशंसा बराबर मिलती रही। कई बार मेरे व्यक्तिगत व्हाट्सएप नंबर पर उन्होंने समूह में प्रकाशित मेरी कविताओं की प्रशंसा मुझे लिखकर भेजी।
हिंदुस्तान दैनिक ने जब मदर्स डे पर माँ संबंधी कविताओं को लेकर एक काव्य गोष्ठी की और मैं उस में भाग लेने के लिए मुरादाबाद में अखबार के कार्यालय में पहुँचा , तब हमारी कविगोष्ठी में मीना नकवी जी मेज के मध्य में मेरे ठीक सामने उपस्थित थीं ।
दिल्ली रोड, मुरादाबाद स्थित बुद्धि विहार पर भी एक कार्यक्रम में मुझे मीना नकवी जी से भेंट करने का अवसर मिला था। वह नोएडा में जरूर रहती थी ,लेकिन मुरादाबाद के साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेने का कोई अवसर नहीं गँवाती थीं।
एक बार मैंने यूट्यूब पर मुशायरों में पढ़ी गई उनकी कविताएँ सुनने के बाद उनकी प्रशंसा की तब उन्होंने कुछ इस तरह कहा था कि मुशायरों का माहौल मेरे अनुकूल नहीं है । मैं सीधे – साधे ढंग से कविताएँ पढ़ती हूँ।
कल व्हाट्सएप समूह पर उनका मैसेज आया था लिखा था:- “तबियत गंभीर है। कहा – सुना क्षमा करना ।” उन्हें अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो चुका था । बीमार थीं और शरीर की नश्वरता को तो वह समझती ही थीं। फिर भी हमने दिलासा देने के लिए उन्हें जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की बात कही। मगर उससे क्या होता है ? विधि का सुनिश्चित विधान जो लिखा था ,वही हुआ और आज सुबह उनके न रहने का दुख भरा समाचार पढ़ने को मिला । उनकी पावन स्मृति को मेरा शत-शत प्रणाम !
अंत में उनकी ही एक गीतिका से अपनी बात समाप्त करता हूँ। इसकी प्रशंसा मैंने उनके व्यक्तिगत व्हाट्सएप पर की थी और उनका बहुत प्यारा धन्यवाद भी मिला था:-
प्रेम के भावों में जब अवहेलना रक्खी गई
मेरे द्वारा फिर नई प्रस्तावना रक्खी गई
जिसने उपवन में सजाए मद भरे रंगीन फूल
जाने क्यों उसके लिए ही ताड़ना रक्खी गई
वृक्ष पौधे और पशु तक अपनेपन से भर गए
मन में मानवता की जिस क्षण भावना रक्खी गई
उसको मन – मंदिर में रखकर भाव सब अर्पण किए
आरती के साथ पूजा-अर्चना रक्खी गई
जब कभी संभव हुआ आदेश उसको दे दिया
और कभी अधरों पे केवल प्रार्थना रक्खी गई
दूसरों के दर्द का आभास करने के लिए
हृदय की अंगनाई में संवेदना रक्खी गई
लेखनी में श्रेष्ठ रचना धर्म ही आधार हो
इसलिए साहित्य में आलोचना रक्खी गई
दिनांकः15 नवंबर 2020
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मीना नकवी जी नमन ( कुंडलिया )
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मीना नकवी जी नमन , सौ-सौ बार प्रणाम
गजलें जितनी भी लिखीं ,सभी दर्द के नाम
सभी दर्द के नाम , हमेशा पीड़ा गाई
अंतर्मन में फाँस , अश्रु रूदन तन्हाई
कहते रवि कविराय , सादगी में नित जीना
सदा रहेगा याद , नाम अति पावन मीना
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शोकाकुल : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451