अंकों की भाषा
अंकों की भाषा भी तो
कर देती बड़े तमाशा,
आठ को काठ मानते
तेरह से गलत एहसासा।
छत्तीस यानी समझते सब
पटरी न बैठ पाना,
अगर उलट जाए तो
असीम प्रेम बरसाना।
एक और एक कमर कसे तो
बन गई बात,
सात और दो जब मिले
निभा गया साथ।
मेरी प्रकाशित पुस्तक
पंखों वाला घोड़ा (बाल कविता-संग्रह)
से चन्द पंक्तियाँ।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति