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10 Jun 2023 · 1 min read

हिंदी की दुर्दशा

एक बार फिर,
हम सब
हिंदी दिवस पर एकत्रित होकर
हिंदी अपनाएं, हिंदी में काम करें
का संकल्प दोहराएंगे
और वर्षपर्यंत अंग्रेजी का दामन थामें
गर्व से ग्रीवा लहराएंगे
मैनें हिंदी की इस दुर्दशा पर
संस्कृत की बड़ी बेटी हिंदी का साक्षात्कार लिया
हिंदी इस बार न तो सकुचाई थी, न सहमी थी
विश्वास से लबरेज, मेरी आंखों में आंखें डालकर
उसने मेरी ही बात मुझसे छीनी थी
कमाल है साहब!
सवाल मुझसे करते हो?
सत्ता के गलियारे में बैठे समाज के ठेकेदारों से
क्या इतना डरते हो?
संविधान निर्मात्री सभा के समक्ष
मेरे अस्तित्व निर्धारण के समय
मैं(हिंदी) एक ही वोट से थी जीती
राजनीति के हाथों की कठपुतली बन
हाशिए पर रहते हुए, अब तक हूं रीती
न अंग्रेजी से बैर मेरा, न सहोदराओं से होड़
फिर भी अपने ही घर में, इतनी उपेक्षित और गौण
चलचित्र,टेली-सीरियल हो या फिर,मोबाइल,फेसबुक और ट्विटर
मंदिर-मस्जिद की अजान हो या नेताओं के भाषण की हुंकार
समझ में सबकी आती हूं, पर शर्म से झुकी जाती हूं.
पूछना उन तथाकथित हिंदी प्रेमियों से
और कहना कि मेरा ये प्रश्न है उनसे
क्या इस बार विश्व हिंदी सम्मेलन में मुझे प्रतिष्ठित करवाओगे
या विदेश यात्रा कर, उपहारों से लदे, खाली हाथ वापस आओगे?

Language: Hindi
337 Views
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