Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Oct 2023 · 2 min read

कितना बदल रहे हैं हम ?

कितना बदल रहे हैं हम ? ये ऐसा विचारणीय प्रश्न है, जिसकी गहराई में जाकर ही हम इसका सही उत्तर दे सकते हैं, ये सही है कि आज वक़्त ही नहीं हम भी बहुत तेज़ी से बदल रहे हैं हमारी जीवन शैली भी पूर्णता बदल गई हैं, रिश्ते कमज़ोर हो रहे हैं, विश्वास टूट रहे हैं, मानसिक आर्थिक तनाव के कारण लोग आत्महत्या कर रहे हैं, वृद्धाश्रम की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है और सबसे चिंताजनक बात कि आज दूध पीती अबोध बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाएं बलात्कार का शिकार हो रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर मासूम बच्चे गंभीर अपराधों में लिप्त हो रहे हैं, कहीं भीड़ कानून अपने हाथ में ले रही है तो कहीं महिलाएं अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कानून का दुरुपयोग कर रही है, कहीं रक्षक भक्षक की भूमिका निभा रहे हैं, तो कहीं रिश्तों की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली घटनाएँ हमारे समक्ष आ रही हैं, कहीं साम्प्रदायिकता में लोग अंधे होकर लोग मरने मारने को उतारू हैं, यहाँ हमारी इंसानियत ही शर्मसार नहीं होती है बल्कि हमारी परवरिश, हमारे संस्कार हमारा आचरण भी परिभाषित होता है और मानसिकता का स्तर भी देखने को मिलता है, आज मूल्यों और नैतिकता के गिरते पतन ने लोगों की संवेदनशीलता को संवेदनहीनता में परिवर्तित कर दिया है यही कारण है कि स्वार्थ अपनी चरम सीमा पर है और सब कुछ होकर भी आत्मिक संतुष्टि नहीं लोग तंहा है मतलब के बिना कोई किसी से सम्बन्ध रखना पसंद नहीं कर रहा है किसी का दर्द अब किसी को छूकर नहीं गुज़र रहा है, अफ़सोस आज सही और ग़लत का अंतर मिट चुका है क्या पा रहे हैं क्या खो रहे हैं कोई सोचना नहीं चाहता, ऐसा बदलाव ऐसी सोच ऐसी मानसिकता किस काम की जिसमें इंसान अपनी इंसानियत को ही भूल जाये, सही ग़लत के अंतर को ही मिटा बैठे ? आज ज़रूरत है खुद से सवाल करने की ज़रूरत अपने इंसान होने की विशेषताओं को तलाशने की है, और साथ ही सामाजिक मानसिकता में बदलाव लाने की है, ज़रूरत है शिक्षा के विस्तार की है, ऊंच नीच के भेद को मिटाने की है, ज़रूरत एक इंसान को दूसरे इंसान को सम्मान देने की है, एक दूसरे की कमियों को नज़र अंदाज़ करने की है, एक दूसरे की मदद करने के जज़्बे को स्वयं में उत्पन्न करने की है, अपने अख़लाक़ को बेहतर से बेहतर बनाने की है, अपनी सोच को निष्पक्ष बनाने के साथ तार्किक बनाये रखने की भी है, समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की है, खुद पर विश्वास करने की है, और जीवन का क्या उद्देश्य है, उसको गम्भीरता से समझने की है।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद

Language: Hindi
Tag: लेख
6 Likes · 155 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr fauzia Naseem shad
View all
You may also like:
राम आधार हैं
राम आधार हैं
Mamta Rani
मैं बंजारा बन जाऊं
मैं बंजारा बन जाऊं
Shyamsingh Lodhi (Tejpuriya)
“दूल्हे की परीक्षा – मिथिला दर्शन” (संस्मरण -1974)
“दूल्हे की परीक्षा – मिथिला दर्शन” (संस्मरण -1974)
DrLakshman Jha Parimal
काले काले बादल आयें
काले काले बादल आयें
Chunnu Lal Gupta
*सावन झूला मेघ पर ,नारी का अधिकार (कुंडलिया)*
*सावन झूला मेघ पर ,नारी का अधिकार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
संवेदना (वृद्धावस्था)
संवेदना (वृद्धावस्था)
नवीन जोशी 'नवल'
आज तुझे देख के मेरा बहम टूट गया
आज तुझे देख के मेरा बहम टूट गया
Kumar lalit
*ख़ुशी की बछिया* ( 15 of 25 )
*ख़ुशी की बछिया* ( 15 of 25 )
Kshma Urmila
"संगठन परिवार है" एक जुमला या झूठ है। संगठन परिवार कभी नहीं
Sanjay ' शून्य'
3320.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3320.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
"गुलाम है आधी आबादी"
Dr. Kishan tandon kranti
प्रेम पर्याप्त है प्यार अधूरा
प्रेम पर्याप्त है प्यार अधूरा
Amit Pandey
यदि  हम विवेक , धैर्य और साहस का साथ न छोडे़ं तो किसी भी विप
यदि हम विवेक , धैर्य और साहस का साथ न छोडे़ं तो किसी भी विप
Raju Gajbhiye
नशा
नशा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
हम पचास के पार
हम पचास के पार
Sanjay Narayan
‘ विरोधरस ‘---5. तेवरी में विरोधरस -- रमेशराज
‘ विरोधरस ‘---5. तेवरी में विरोधरस -- रमेशराज
कवि रमेशराज
■
■ "टेगासुर" के कज़न्स। 😊😊
*Author प्रणय प्रभात*
करगिल के वीर
करगिल के वीर
Shaily
रिश्तों की मर्यादा
रिश्तों की मर्यादा
Rajni kapoor
अपनी स्टाईल में वो,
अपनी स्टाईल में वो,
Dr. Man Mohan Krishna
बता ये दर्द
बता ये दर्द
विजय कुमार नामदेव
पर्दाफाश
पर्दाफाश
Shekhar Chandra Mitra
खुद से मिल
खुद से मिल
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
*मन राह निहारे हारा*
*मन राह निहारे हारा*
Poonam Matia
रसों में रस बनारस है !
रसों में रस बनारस है !
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
अंधेरे आते हैं. . . .
अंधेरे आते हैं. . . .
sushil sarna
संघर्ष ज़िंदगी को आसान बनाते है
संघर्ष ज़िंदगी को आसान बनाते है
Bhupendra Rawat
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
ताप जगत के झेलकर, मुरझा हृदय-प्रसून।
ताप जगत के झेलकर, मुरझा हृदय-प्रसून।
डॉ.सीमा अग्रवाल
Loading...