हर एक मंजिल का अपना कहर निकला
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हर एक मंजिल का अपना कहर निकला
चंद अपने थे और तमाशा ए शहर निकला
जिसको दूर से हमनें देखा मंजिल की तरह
वो मरीचिका की तरह पानी सा लहर निकला
◦•●◉✿कवि दीपक सरल✿◉●•◦
हर एक मंजिल का अपना कहर निकला
चंद अपने थे और तमाशा ए शहर निकला
जिसको दूर से हमनें देखा मंजिल की तरह
वो मरीचिका की तरह पानी सा लहर निकला
◦•●◉✿कवि दीपक सरल✿◉●•◦