वो मेरी कविता
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वो मेरी कविता
झुलस गई
तपती दुपहरी में
एक तो अभी भी
ठिठुर रही है
पेड़ के पीछे
दिया था मैंने छाता
मत भीग पगली
कोई नही आने वाला
तुझे उठाने
पर कहां मानी वो
करती रही इंतजार
कैसे समझाऊं उसे
जिंदगी एक ही सांस
से चलती है,
वो भी खुद ही लेनी पड़ती है।