ये जाति और ये मजहब दुकान थोड़ी है।
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#गज़ल
1212/1122/1212/22
ये जाति और ये मजहब दुकान थोड़ी है।
के ऐसे लोगों का दीनो अमान थोड़ी है।
जो चाहता वही मुॅंह से निकाल देता तू,
वो एक दोस्त है तेरा गुलाम थोड़ी है।
जो चीज चाहेंगे वो आप बेच डालेंगे,
हुजूर आपका अपना मकान थोड़ी है।
लटक रहे हैं जो फल आम के वो कैसे दूं,
हमारे हाथ में तीर ओ कमान थोड़ी है।
न देख घर में तू जन्नत की हूर ऐ प्रेमी,
अरे वो बीबी है जीनत अमान थोड़ी है।
……….✍️ सत्य कुमार प्रेमी