Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Jun 2022 · 3 min read

मेरी गुड़िया (संस्मरण)

बचपन की अपनी एक दुनिया होती है। इस दुनिया में मित्रों से अधिक प्रिय खिलौने और उनसे जुड़े खेल होते हैं। कोई व्यक्ति जब बच्चा होता है तो उसे कोई न कोई खिलौना विशेष रूप से प्रिय होता है। यह खिलौना उसके लिए मात्र खिलौना न होकर उस दौर में उसकी निजी पूँजी सा महत्वपूर्ण होता है, जिसका खो जाना उसके लिए इस कदर असहनीय होता है कि उसके बालमन पर ऐसी अमिट छाप छोड़ जाता है, जिसे अपनी स्मृति से मिटा पाना उसके सम्पूर्ण जीवन में
असम्भव सा होता है।

बचपन में मेरा प्रिय खिलौना मेरी गुड़िया थी। यह गुड़िया कब, कहाँ और कैसे मेरी जिंदगी का हिस्सा बनी, कुछ याद नहीं। याद है तो बस इतना कि बचपन के कुछ महत्वपूर्ण वर्ष हमने साथ गुजारे। मेरी यह गुड़िया मध्यम कद की, गोल चेहरे व गोल-गोल आँखों, गौर वर्ण व सुनहरे बालों वाली खूबसूरत साथी थी।
बचपन के कितने वर्ष मैंने इसके साथ खेल कर बिताये, पता नहीं। किन्तु इसके बिना उन दिनों मेरा हर दिन, हर खेल अधूरा सा रहता था। उठते-बैठते, सोते-जागते जहाँ तक सम्भव हो, गुड़िया मेरे साथ ही होती और मेरे लगभग प्रत्येक खेल का केन्द्रबिन्दु होती। मुझे इससे इतना लगाव था कि अपने छोटे-छोटे हाथों से मैं अपनी बुद्धि व योग्यतानुसार इसके वस्त्र बनाती और उन वस्त्रों को पहनाकर अनेक प्रकार से इसे सजाती-सँवारती। ऊन सलाई लेकर इसके लिए गर्म कपड़े भी मैंने अपनी बुद्धि अनुसार बुने और पहनाये।
आज के दौर में तो हर वस्तु बाजार से तैयार खरीद सकते हैं। किन्तु हम जब बच्चे थे तब खेल भी खेलने हेतु अपनी पूर्ण कुशलता एवं कल्पनाशीलता का प्रयोग करना पड़ता था। खेलने के लिये साथी व साधन दोनों जुटाने होते थे।

गुड़िया से वैसे तो हम किसी भी प्रकार खेल लेते थे। किन्तु हमारा सर्वाधिक प्रिय खेल गुड़िया की शादी होता था, जिसके लिए वह सम्पूर्ण व्यवस्था बनाने का हमारा प्रयास रहता जोकि वास्तव में शादी हेतु आवश्यक होती है। अतः सर्वप्रथम हम बच्चे जोकि मेरी बहनें एवं सहेलियाँ होती थीं, सब दो टोलियों वर एवं वधू पक्ष में बँट जाते। फिर बुद्धि अनुसार वे समस्त प्रक्रियाएँ पूर्ण करने का हमारा प्रयास रहता जो हम अक्सर विवाह में होते देखते थे।

फिर एक दिन ऐसा हुआ कि मेरी प्रिय गुड़िया मुझसे सदा के लिये दूर कर दी गयी। दरअसल व्यक्तिगत संकीर्ण विचारधारा के कारण मेरे छोटे चाचाजी का दृष्टिकोण था कि गाड़ियों से खेलने के कारण परिवार में बेटियों की संख्या बढ़ती है। यही कारण था कि जब कभी हम गुड़िया से खेलते तो उन्हें बहुत बुरा लगता था। अतः एक दिन ऐसे ही खेल खेलते समय उन्होंने मेरी गुड़िया बीच खेल में उठा ली और उसके सभी अंग अलग-अलग कर घर के बाहर नाले में फेंक दिये। इसके बाद मैं उस गुड़िया से कभी खेल नहीं पायी। परन्तु आज भी वह गुड़िया और उससे जुड़ी यह घटना कहीं भीतर तक मेरी स्मृतियों में बसी है।

अक्सर जब कभी समाज में किसी बेटी से दुर्व्यवहार होते देखती या सुनती हूँ, मन बेहद आहत व अपमानित महसूस करता है कि हम ऐसे समाज का हिस्सा हैं, जहाँ न केवल बेटी अपितु उसके खिलौनों से भी भेदभावपूर्ण व्यवहार करने वाले लोग मौजूद हैं। कहीं न कहीं इस घटना ने मुझे प्रेरित किया कि बेटी को स्वयं में इतना सक्षम होना चाहिए कि अपने अस्तित्व एवं स्वाभिमान को सुरक्षित रख सके।

रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक :- ०४/०८/२०२१.

Language: Hindi
3 Likes · 4 Comments · 1486 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Kanchan Khanna
View all
You may also like:
प्रेम और घृणा दोनों ऐसे
प्रेम और घृणा दोनों ऐसे
Neelam Sharma
*अभागे पति पछताए (हास्य कुंडलिया)*
*अभागे पति पछताए (हास्य कुंडलिया)*
Ravi Prakash
फूल मुरझाए के बाद दोबारा नई खिलय,
फूल मुरझाए के बाद दोबारा नई खिलय,
Krishna Kumar ANANT
ना कहीं के हैं हम - ना कहीं के हैं हम
ना कहीं के हैं हम - ना कहीं के हैं हम
Basant Bhagawan Roy
"दोस्ती का मतलब"
Radhakishan R. Mundhra
यादों पर एक नज्म लिखेंगें
यादों पर एक नज्म लिखेंगें
Shweta Soni
मछली रानी
मछली रानी
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
नम आंखे बचपन खोए
नम आंखे बचपन खोए
Neeraj Mishra " नीर "
जय हनुमान
जय हनुमान
Santosh Shrivastava
लोकतंत्र में —
लोकतंत्र में —
SURYA PRAKASH SHARMA
🙅आज का लतीफ़ा🙅
🙅आज का लतीफ़ा🙅
*प्रणय प्रभात*
इस दुनिया का प्रत्येक इंसान एक हद तक मतलबी होता है।
इस दुनिया का प्रत्येक इंसान एक हद तक मतलबी होता है।
Ajit Kumar "Karn"
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
इस तरफ न अभी देख मुझे
इस तरफ न अभी देख मुझे
Indu Singh
2385.पूर्णिका
2385.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
"स्टेटस-सिम्बल"
Dr. Kishan tandon kranti
क्या अब भी तुम न बोलोगी
क्या अब भी तुम न बोलोगी
Rekha Drolia
अर्थ  उपार्जन के लिए,
अर्थ उपार्जन के लिए,
sushil sarna
क्यों गम करू यार की तुम मुझे सही नही मानती।
क्यों गम करू यार की तुम मुझे सही नही मानती।
Ashwini sharma
कैसे करें इन पर यकीन
कैसे करें इन पर यकीन
gurudeenverma198
आप और हम जीवन के सच....…...एक कल्पना विचार
आप और हम जीवन के सच....…...एक कल्पना विचार
Neeraj Agarwal
इन आँखों में इतनी सी नमी रह गई।
इन आँखों में इतनी सी नमी रह गई।
लक्ष्मी सिंह
सदियों से जो संघर्ष हुआ अनवरत आज वह रंग लाई।
सदियों से जो संघर्ष हुआ अनवरत आज वह रंग लाई।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
तुमने कितनो के दिल को तोड़ा है
तुमने कितनो के दिल को तोड़ा है
Madhuyanka Raj
बाल कविता: चूहा
बाल कविता: चूहा
Rajesh Kumar Arjun
यूं कीमतें भी चुकानी पड़ती है दोस्तों,
यूं कीमतें भी चुकानी पड़ती है दोस्तों,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
जैसे पतझड़ आते ही कोयले पेड़ की डालियों को छोड़कर चली जाती ह
जैसे पतझड़ आते ही कोयले पेड़ की डालियों को छोड़कर चली जाती ह
Rj Anand Prajapati
माँ की आँखों में पिता / मुसाफ़िर बैठा
माँ की आँखों में पिता / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
विद्यार्थी को तनाव थका देता है पढ़ाई नही थकाती
विद्यार्थी को तनाव थका देता है पढ़ाई नही थकाती
पूर्वार्थ
ख्वाहिशों की ज़िंदगी है।
ख्वाहिशों की ज़िंदगी है।
Taj Mohammad
Loading...