“मन-मतंग”
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“मन-मतंग”
मन की थाह लागे ना कभी,
ना मन के आगे चले कोई जोर।
मन तो ठहरे बिन पंख का पंछी,
उड़े जब-जब ना होवे कोई शोर।
“मन-मतंग”
मन की थाह लागे ना कभी,
ना मन के आगे चले कोई जोर।
मन तो ठहरे बिन पंख का पंछी,
उड़े जब-जब ना होवे कोई शोर।