भोर
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रात्रि के वैभव के बाद
चन्द्र मलिन हो गया।
सूर्य से पराजित हो
मुँह छिपा कहीं सो गया।।
संग अपने स्वामी के
तारे भी धूमिल हो गये।
जगमगाते थे रात भर
जाने कहाँ अब खो गये।।
चहक – चहक कर पंछी
करने लगे यह शोर।
आ गयी भोर लो
फिर आ गयी भोर।।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
वर्ष :- २०१३.