“बेड़ियाँ”
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“बेड़ियाँ”
हरे दरख्तों को काट कर
जंगल-झाड़ियाँ उजाड़ कर
खड़े कर रहे जो
आसमान छूती हवेलियाँ,
जाने-अनजाने में वे ही
अपने पाँवों में
आज डाल रहे हैं बेड़ियाँ।
“बेड़ियाँ”
हरे दरख्तों को काट कर
जंगल-झाड़ियाँ उजाड़ कर
खड़े कर रहे जो
आसमान छूती हवेलियाँ,
जाने-अनजाने में वे ही
अपने पाँवों में
आज डाल रहे हैं बेड़ियाँ।