बादल
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बादल
ए बादल मत इतनी मनमानी कर,
फ़सल खेत में खड़ी है।
किसान की जान अटकी पड़ी है।
रुख बदल दे तू अपना,
ताकी फिर किसी इंसान को फांसी पर न पड़े लटकना।
बादल
ए बादल मत इतनी मनमानी कर,
फ़सल खेत में खड़ी है।
किसान की जान अटकी पड़ी है।
रुख बदल दे तू अपना,
ताकी फिर किसी इंसान को फांसी पर न पड़े लटकना।