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9 May 2024 · 1 min read

पढ़े-लिखे पर मूढ़

जाओ तुम चले जाओ,
अवमानना की नगरी में .
मुड़ -मुड़ कर क्यों ताक रहे हो
आशाओं की गगरी में ?

लौट जाओ फिर अंधकूप में
तुम्हें सत्य समझाए कौन !
पढ़े-लिखे पर, मूढ़ ही हो तुम
तुम्हें राह दिखलाए कौन ?

तुम नहीं अस्त्र किसी सत्ता के,
ना तुम वैरी के औजार !
मानव का तो रूप धरे हो ,
कर लो मानवता साकार I

बात-बात पर आगजनी कर ,
फूंक रहे राष्ट्र संपत्ति!
शांति से या कानून से
जाहिर करो जो है आपत्ति

कितना लहू बहा है सोचो ,
आजादी की चाह पर
देश की अस्मिता डाल रहे क्यूँ ?
बर्बादी की राह पर I

पंख लगा के मोम के तुम
जो सूरज तक जाओगे
पंख जला कर ,अपमानित हो
दु:ख ही दु:ख बस पाओगे!

Language: Hindi
1 Like · 42 Views
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