दशरथ माँझी संग हाइकु / मुसाफ़िर बैठा
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बाइस वर्ष
साधा माँझी ने
हाथ हथौड़ा
[2]
पहाड़ फाड़
दे निकाल रास्ता जो
बनता माँझी
[3]
अभावों से जो
आत्मविश्वास जगे
वो माँझी मन
[4]
ताजमहल
के जो पार श्रम है
माँझी प्रेम वो
[5]
उम्मीदों से भी
बड़ा है जो कद, है
वो पक्का माँझी
[6]
पता नहीं जो
अपना दम दाम
तब माँझी क्या
[7]
गिरि से ऊँचा
उसे ही लांघ बने
जो, माँझी वह