तू प्रतीक है समृद्धि की

तू प्रतीक है समृद्धि की,
तू लक्ष्मी जो है,
होता है तेरा वास वहाँ,
जहाँ होते हैं स्वर्ण से भरें कुंभ,
मुद्राओं से भरी होती है कोठियां,
तू वहीं रहना पसन्द करती है,
जहाँ बसते हैं अमीर लोग,
वहीं नजर आती है खुश तू ,
क्योंकि वो ही कर सकते हैं,
तेरी मेहमान नवाजी अच्छी तरह,
अपनी स्वर्ण थाली में दीप जलाकर।
तू प्रतीक है समृद्धि की,
तू लक्ष्मी जो है,
मैं और मेरे जैसे,
जिनको नसीब नहीं है ,
एक वक्त की रोटी भी,
और जिनके पास नहीं है,
एक टूटी छत भी,
अपना सिर छुपाने को,
नहीं है जिनके पास,
एक फटा-पुराना कपड़ा भी,
अपनी इज्जत और तन बचाने को,
क्या तुमको पसन्द है,
ये मलिन और दुर्गंध वाली सूरतें।
तू प्रतीक है समृद्धि की,
तू लक्ष्मी जो है,
तू विशाल स्वर्ण जड़ित प्रतिमा है,
जबकि हम सक्षम नहीं है,
भार अपना उठाने को,
तेरा क्या बोझ उठा पायेंगे,
खुश है हम अपने ऐसे जीवन में,
जिसमें नहीं है कोई महत्त्वकांक्षा,
अनन्त इच्छाओं के सपनें,
आबाद है हम अपनी इस बस्ती में,
जहाँ नहीं है भेद गरीबी में,
और सोते हैं चैन से हम,
बिना भविष्य की चिंता के।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)