Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Feb 2024 · 2 min read

*जीवन सिखाता है लेकिन चुनौतियां पहले*

शीर्षक – जीवन सिखाता है लेकिन चुनौतियां पहले
लेखक – डॉ. अरुण कुमार शास्त्री – पूर्व निदेशक

वह मृत्युभय से, तो भाई सबको डराता है ।
कोई भी अवस्था हो , कोई भी पल हो ।
एक इन्सान इस बात को कहां भूल पाता है।
कभी अपने अनुभव, कभी दूसरों के कष्ट,
देख -देख , स्वप्न में भी मनुष्य डर जाता है ।
वह मृत्युभय से, तो भाई सबको डराता है ।

कहने को कहना पड़ता है अरे वह इंसान कैसा ,
जो चुनौतिया आने पर उनका सामना नहीं करता ।
जीवन में कई विकल्प हैं , उनका प्रयोग नहीं करता।
किसी दी गई स्थिति के लिए , कमजोर पड़ जाता है।

लेकिन एक कठिन स्थिति में यह तो बिलकुल स्पष्ट है।
इसका रोमांच इसका रहस्य ही तो जीवन मकरंद है ।
और यह वास्तव में इस विचार से रोमांचित हो जाता है।
जीवन का सच्चा आनंद तो आश्चर्य में ही मिल पाता है ।

एक अचानक सा पहलू, एक सुंदर अवसर असमंजस का ।
वह मृत्युभय से, तो भाई सबको डराता है ।
मैं आपसे विलग कहां , मैं आपका ही प्रतिरूप हूं ।
मैं जीवन में करो या मरो की स्थितियों का जागता रूप हूं।
ये पहलू आप भिन्न भिन्न परिस्थितियों में पा चुके हैं ।

उस समय आपके निर्णय आपके जीवन मंत्र स्वरूप हैं।
जो जीवन में कभी नहीं हुआ, लेकिन अब हुआ अजब हुआ।
क्योंकि जीवन पहले एक चुनौती है, फिर एहसास है ।
यही जीवन की परिणीति है यही बात बहुत खास है।

पहले सवाल आता है बाद में उत्तर बताता है ईश्वर ऐसे ही सिखाता है ।
पल – पल इसी प्रकार ये एहसास एक अभ्यास तजुर्बा बन जाता है।
वह मृत्युभय से, तो भाई सबको डराता है ।
कोई भी अवस्था हो , कोई भी पल हो ।
एक इन्सान इस बात को कहां भूल पाता है।
कभी अपने अनुभव, कभी दूसरों के कष्ट,
देख -देख , स्वप्न में भी मनुष्य डर जाता है ।

छोटे और आसान रास्ते, भ्रामक होते हैं बहुधा संकट में डाल सकते हैं।
लंबे रास्ते कष्टदायक मगर सजग , पल – पल रोमांच से भरे ।
वो आपको उनकी विविद्यता का दीदार कराना चाहता है ।
दूनिया के अजब अजूबों से आपको मिलवाना चाहता है ।
फिर आश्चर्य मिश्रित कांति का उदीयमान सूर्य प्रकट कर
हर्षित होते देखना चाहता है।

वह मृत्युभय से, तो भाई सबको डराता है ।
कोई भी अवस्था हो , कोई भी पल हो ।
एक इन्सान इस बात को कहां भूल पाता है।
कभी अपने अनुभव, कभी दूसरों के कष्ट,
देख -देख , स्वप्न में भी मनुष्य डर जाता है ।

लेकिन ईश्वर तो पिता समान अपने बच्चे को ऐसे ही सिखाता है।

Language: Hindi
81 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from DR ARUN KUMAR SHASTRI
View all
You may also like:
मजदूरों से पूछिए,
मजदूरों से पूछिए,
sushil sarna
आंखों की नशीली बोलियां
आंखों की नशीली बोलियां
Surinder blackpen
महाराणा सांगा
महाराणा सांगा
Ajay Shekhavat
*** सिमटती जिंदगी और बिखरता पल...! ***
*** सिमटती जिंदगी और बिखरता पल...! ***
VEDANTA PATEL
"कदर"
Dr. Kishan tandon kranti
क्या मथुरा क्या काशी जब मन में हो उदासी ?
क्या मथुरा क्या काशी जब मन में हो उदासी ?
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
वो झील-सी हैं, तो चट्टान-सा हूँ मैं
वो झील-सी हैं, तो चट्टान-सा हूँ मैं
The_dk_poetry
आरक्षण
आरक्षण
Artist Sudhir Singh (सुधीरा)
रक्तदान
रक्तदान
Pratibha Pandey
बरखा
बरखा
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
"अर्पित भाव सुमन करता हूँ "
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
पढ़ो लिखो आगे बढ़ो...
पढ़ो लिखो आगे बढ़ो...
डॉ.सीमा अग्रवाल
लम्हें हसीन हो जाए जिनसे
लम्हें हसीन हो जाए जिनसे
शिव प्रताप लोधी
यह कौनसा आया अब नया दौर है
यह कौनसा आया अब नया दौर है
gurudeenverma198
भारी पहाड़ सा बोझ कुछ हल्का हो जाए
भारी पहाड़ सा बोझ कुछ हल्का हो जाए
शेखर सिंह
3117.*पूर्णिका*
3117.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बुंदेली दोहे- खांगे (विकलांग)
बुंदेली दोहे- खांगे (विकलांग)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
*मेरे सरकार आते हैं (सात शेर)*
*मेरे सरकार आते हैं (सात शेर)*
Ravi Prakash
भौतिकवादी
भौतिकवादी
लक्ष्मी सिंह
न जमीन रखता हूँ न आसमान रखता हूँ
न जमीन रखता हूँ न आसमान रखता हूँ
VINOD CHAUHAN
अपनी मर्ज़ी के
अपनी मर्ज़ी के
Dr fauzia Naseem shad
भस्मासुर
भस्मासुर
आनन्द मिश्र
तेवरी को विवादास्पद बनाने की मुहिम +रमेशराज
तेवरी को विवादास्पद बनाने की मुहिम +रमेशराज
कवि रमेशराज
चकोर हूं मैं कभी चांद से मिला भी नहीं।
चकोर हूं मैं कभी चांद से मिला भी नहीं।
सत्य कुमार प्रेमी
बिना पंख फैलाये पंछी को दाना नहीं मिलता
बिना पंख फैलाये पंछी को दाना नहीं मिलता
Anil Mishra Prahari
****माता रानी आई ****
****माता रानी आई ****
Kavita Chouhan
मौत का क्या भरोसा
मौत का क्या भरोसा
Ram Krishan Rastogi
यूं ही नहीं कहते हैं इस ज़िंदगी को साज-ए-ज़िंदगी,
यूं ही नहीं कहते हैं इस ज़िंदगी को साज-ए-ज़िंदगी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
हर गम छुपा लेते है।
हर गम छुपा लेते है।
Taj Mohammad
जिंदगी कि सच्चाई
जिंदगी कि सच्चाई
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
Loading...