जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। न सुख, न दुःख,न नौकरी, न रिश
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/93e33476aaf0e6ae573825431c682fc5_6d5639fe347de6781403e4f53d4dbeee_600.jpg)
जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। न सुख, न दुःख,न नौकरी, न रिश्ते, कुछ भी नहीं। एक नियत समय पर सबको छूटना ही है, पर छूटने की क्रिया में कब कुछ छूट पाया है। बल्कि शामिल हो जाती है, उदासी, उदासीनता, ऊब, घुटन, पीड़ा और भी न जाने क्या-क्या?
छूटने के क्रम में तो हरा पत्ता भी पीला-पीला पड़ जाता है, फिर हम तो मनुष्य हैं! और हमारी भावनाएं किसी की प्रयोगशाला, जिसपर लोग अपने प्रयोग करते रहते हैं!
“संवेदनशील हृदय के लिए कितनी बड़ी चुनौती है, प्रयोगात्मक दौर में भावनात्मक रहना”
●●●