जय रावण जी / मुसाफ़िर बैठा
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वह युवा
नया नया नौकरी में आया है
गाय टाइप से रहा किया है कुछ महीनों तक
अब थोड़ा थोड़ा खुल रहा है
खुल बदल कर बैल बनने की ओर है
बल्कि अपने एक आचरण से
भगवा बैल लगने लगा है
अंततः बिगड़ैल कैटेगरी का भगवा बैल
या कि चुप्पा बदमाश ही साबित हो वह
क्या ठिकाना
वह युवा
इधर अपने मोबाइल मैसेज टोन को
एक एग्रेसिव हिंदुत्व में जीने वाले व्यक्ति की तरह बरत रहा है
इरिटेटिंग उसका यह व्यवहार है, सो अलग
जब जब उसके मोबाइल में
कोई मैसेज डिलीवर होता है
’जय श्रीराम’ की मीठी स्त्री ध्वनि आती है
मीठी छुरी है वह युवक
इसका आभास करा जाती है
उसके पास में ही बैठता हूं मैं
एक दिन मैंने ज्यादा प्रच्छन्न और तनिक प्रकट शब्दों में मना भी किया
कि यह मैसेज टोन तो इधर लगा लिया है तूने
क्यों इस सब के पचड़े में पड़ते हो
मेरी बात को एक कान से सुन
दूसरे से निकल दिया उसने
कल मैंने भी अपने मोबाइल फोन के
ध्वनि शून्य मैसेज टोन को
कानों को कटु अथवा अप्रिय लगने वाले टोन में बदल दिया
अब मेरे मोबाइल की मार्फत मुझतक मैसेज
’जय रावण जी’ की मेरी आवाज में आता है
मैंने कीचड़ से कीचड़ को धोने की
यह ’प्रतिदानी’ कोशिश की है
देखिए, सफाई हो पाती है या नहीं?