जन्मपत्री / मुसाफ़िर बैठा
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मुर्दों की तो होती ही नहीं जन्मपत्री
जिंदों की भी नहीं होनी चाहिए
किसी शातिर गंद-दिमाग की उपज है यह जन्मपत्री
जो फैल पसर कर
हर कोटि के अंधविश्वासी मनुष्य को
मतांध बना जाती है
और करती होती है निरर्थक व अनर्थक हस्तक्षेप ज़िंदगी के मरहले में।
मरण के बिना
किसी जन्मपत्री के कायदे का
कोई मतलब नहीं
और, है कोई माई का लाल
को तैयार कर सके मरणपत्री?