Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Aug 2016 · 1 min read

गज़ल :– दिल दरवाजा खोल रखा है !!

ग़ज़ल :– दिल दरवाजा खोल रखा है !!

बहर –222—-221—122 !!
!
तुम आयोगी बोल रखा है !
दिल दरवाजे खोल रखा है !!
!
समझाओ तुम इस पगले को !
अन्दर कुछ अनमोल रखा है !!
!
सुंदर साज सुडौल नहीं पर !
ये अपनी काजोल रखा है !!
!
अरमानों की प्रेम क्षुधा में !
मीठे सपने घोल रखा है !!
!
जज्बातों की मापदण्ड का !
हर नक्शा भूगोल रखा है !!

गज़लकार :– अनुज तिवारी “इन्दवार “

3 Likes · 7 Comments · 604 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

ये गड़ी रे
ये गड़ी रे
Dushyant Kumar Patel
#Secial_story
#Secial_story
*प्रणय*
राम अवतार
राम अवतार
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
राखी
राखी
Shashi kala vyas
"कविता के बीजगणित"
Dr. Kishan tandon kranti
ग़ज़ल (गहराइयाँ ग़ज़ल में.....)
ग़ज़ल (गहराइयाँ ग़ज़ल में.....)
डॉक्टर रागिनी
जो है दिल में वो बताया तो करो।
जो है दिल में वो बताया तो करो।
सत्य कुमार प्रेमी
'बेटी'
'बेटी'
Godambari Negi
भय की शिला
भय की शिला
शिवम राव मणि
वसंत के दोहे।
वसंत के दोहे।
Anil Mishra Prahari
विश्व भर में अम्बेडकर जयंती मनाई गयी।
विश्व भर में अम्बेडकर जयंती मनाई गयी।
शेखर सिंह
किसी की बेवफाई ने
किसी की बेवफाई ने
डॉ. एकान्त नेगी
कुछ ख्वाहिश रही नहीं दिल में ,,,,
कुछ ख्वाहिश रही नहीं दिल में ,,,,
Ashwini sharma
4190💐 *पूर्णिका* 💐
4190💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
आजादी का नया इतिहास
आजादी का नया इतिहास
Sudhir srivastava
खबर
खबर
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
*भोग कर सब स्वर्ग-सुख, आना धरा पर फिर पड़ा (गीत)*
*भोग कर सब स्वर्ग-सुख, आना धरा पर फिर पड़ा (गीत)*
Ravi Prakash
पितरों का लें आशीष...!
पितरों का लें आशीष...!
मनोज कर्ण
डर हक़ीक़त में कुछ नहीं होता ।
डर हक़ीक़त में कुछ नहीं होता ।
Dr fauzia Naseem shad
ऋतुराज
ऋतुराज
Santosh kumar Miri
एक लम्हा
एक लम्हा
हिमांशु Kulshrestha
चश्मा
चश्मा
Awadhesh Singh
जय श्री राम
जय श्री राम
आर.एस. 'प्रीतम'
इतना आसां नहीं ख़ुदा होना..!
इतना आसां नहीं ख़ुदा होना..!
पंकज परिंदा
ग़ज़ल’ की प्रतिक्रिया में ‘तेवरी’ + डॉ. परमलाल गुप्त
ग़ज़ल’ की प्रतिक्रिया में ‘तेवरी’ + डॉ. परमलाल गुप्त
कवि रमेशराज
बिखरे खुद को, जब भी समेट कर रखा, खुद के ताबूत से हीं, खुद को गवां कर गए।
बिखरे खुद को, जब भी समेट कर रखा, खुद के ताबूत से हीं, खुद को गवां कर गए।
Manisha Manjari
जो हमें क़िस्मत से मिल जाता है
जो हमें क़िस्मत से मिल जाता है
Sonam Puneet Dubey
तू अपने आप पे इतना गुरूर मत कर,
तू अपने आप पे इतना गुरूर मत कर,
Dr. Man Mohan Krishna
10वीं के बाद।।
10वीं के बाद।।
Utsaw Sagar Modi
चार कंधों पर जब, वे जान जा रहा था
चार कंधों पर जब, वे जान जा रहा था
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
Loading...