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7 Sep 2023 · 1 min read

ग़ज़ल

गिरगिट की तरह रंग बदलतें हैं लोग क्यों
चेहरे से अपने रोज उतरतें हैं लोग क्यों

यह जानते हुए कि हस्र ज़िन्दगी का क्या
जी करके भी बेमौत यूँ मरतें हैं लोग क्यों

मकड़ी की तरह जाल वो बुनतें हैं भरम के
ख़ुद के बिछाए जाल में फँसतें हैं लोग क्यों

किस्मत को बनाने में हो जातें हैं बरबाद
हाथों की लकीरों में उलझतें हैं लोग क्यों

बुझती नही है आग कभी आग से कहीं
पानी में लगा आग फिर जलतें हैं लोग क्यों

Language: Hindi
4 Likes · 126 Views
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