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3 Oct 2022 · 1 min read

क्या ज़रूरत थी

थी तेरी हसरत
उसे अपना बनाने की
क्या ज़रूरत थी
ये बात ज़माने को बताने की

चाहत थी तेरी
ज़िंदगी संग उसके बिताने की
क्या ज़रूरत थी
ये बात तुम्हें सबको बताने की

सिर्फ वो तेरी नहीं
सबके लबों पर है अब वही
क्या ज़रूरत थी
महफिल में गज़ल सुनाने की

आदत है जिनकी
शीशे के महलों में रहने की
क्या ज़रूरत थी
उन्हें आईना दिखाने की

भीगी हुई थी वो
बरसात अपने शबाब पर थी
क्या ज़रूरत थी
उसे आज फिर रुलाने की

प्रचार से कुछ नहीं होता
कहते हो, किरदार में दम होना चाहिए
फिर क्या ज़रूरत थी
जगह जगह ये इश्तिहार लगाने की।

Language: Hindi
9 Likes · 872 Views
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Books from सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'

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