कविता
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कविता :-
ऊंचाई कितनी ही
चापलूसी की तुम बढ़ा लो,
लेकिन कद तो
काम करने से ही बढ़ता है।
तुम्हें लाख बुराइयां
दिखती हो उसमें लेकिन।
उसकी एक खूबी से ही
सारा जहां झुकता है।।
अपने गिरेबान में झांक कर देखो।
तू कहां उनके सामने टिकता है।
आपनी दौलत पै मत इतरा।
साथ लेकर नहीं जा सकता है।।
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राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
टीकमगढ़ (मप्र)*
मोबाइल-9893520965
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