और चलते रहे ये कदम यूँही दरबदर
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और चलते रहे ये कदम यूँही दरबदर
के मिलेगी कभी पैरो के वास्ते चादर
जब नजरे फेरे मैंने खामोश सन्नाटो में
कुछ बदन नंगे सोये थे बदन ही ओढ़कर
✍️© ‘अशांत’ शेखर
11/02/2023
और चलते रहे ये कदम यूँही दरबदर
के मिलेगी कभी पैरो के वास्ते चादर
जब नजरे फेरे मैंने खामोश सन्नाटो में
कुछ बदन नंगे सोये थे बदन ही ओढ़कर
✍️© ‘अशांत’ शेखर
11/02/2023