आओ थोड़ा जी लेते हैं
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आओ, थोड़ा जी लेते हैं
आओ, थोड़ा जी लेते हैं
कल का क्या भरोसा ?
इसलिए आज ही अपने
अटके सारे काम निपटाते हैं।
बहुत कर ली हमने तू-तू मैं-मैं
अब साथ जी करके देखते हैं।
आओ, आज सब मिलकर
हम मन के मैल मिटाते हैं।
बहुत भटक चुके हैं हम
अब और नहीं भटकेंगे।
बहुत जी लिए हम अपने लिए
अब औरों के लिए भी जीएँगे।
बहुत कर लिए जोड़-तोड़
अब इससे हम बचते हैं।
जो कुछ भी पास हमारे है
उसे ही अब पूरा मानते हैं।
करने को तो काम बहुत हैं
यहाँ समय का भी अभाव है।
आओ, हम कुछ अच्छा करते हैं
अपने पीछे छाप छोड़ जाते हैं।
आओ, थोड़ा जी लेते हैं।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़