अधूरा घर
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वह एक घर था
उसमें खिड़कियाँ थीं
ताजी हवा आने के लिए
उसमें सभी सुख – सुविधाएँ थीं
मन बहलाने के लिए
उसमें कुछ दरवाजे थे
बाहर – भीतर आने – जाने के लिए
उसमें एक बालकनी भी थी
कभी – कभी बाहर झाँकने के लिए
उसमें रहते थे कुछ लोग भी
जो बात – बात पर
हँसते – मुस्कुराते थे
एक – दूसरे के साथ मिलकर
कहकहे लगाते थे
फिर भी वह घर अधूरा था
उसमें रहने वालों की
हँसी और कहकहे खोखले थे
क्योंकि –
नहीं था उन सबके बीच
आपसी स्नेह और अपनापन।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत) ।
वर्ष :- २०१३.