अज्ञात है हम भी अज्ञात हो तुम भी…!
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अज्ञात है हम भी अज्ञात हो तुम भी…!
अज्ञात है राहें सारी अज्ञात सी मंजिलें भी..!!
अज्ञात है दर्द भी अज्ञात है आँसू भी…!
अज्ञात है यादें सारी अज्ञात से फासलें भी..!
अज्ञात है शब्द भी अज्ञात है मुलाकात भी…!
अज्ञात है ख्वाहिशें सारी अज्ञात सी गजलें भी..!!
अज्ञात है सपने भी अज्ञात है अपने भी…!
अज्ञात है सासे सारी अज्ञात सी जिन्दगी भी..!!
तुम आकर इस अज्ञात का कलंक मिटा देना…!
अज्ञात से मुक्त करके मुझे तुम ज्ञात कर लेना..!!
~ आरती सिरसाट